चल कुंडली धारामापी (moving coil galvanometer)

  चल कुंडली धारामापी (moving coil galvanometer) 

ऐसा यन्त्र जो किसी वैद्युत धारा की उपस्थिति ज्ञात करने और इसके मापन के लिए प्रयुक्त किया जाता है | चल कुण्डली धारामापी कहलाता है|


रचना 

इसमे ऐलुमिनियम के फ्रेम पर के प्रथककृत तार को लपेट कर आयाताकार कुण्डली बनायीं जाती है| जोएक फॉस्फर ब्रॉन्ज की पत्ती पर लटकी होती है| इस पत्ती का ऊपरी सिरा मरोड़ टोपी से लटका होता है |और निचला सिरा spring पर टिक होता है| कुंडली के बीच एक नरम लोहे कि बेलनाकार क्रोड लगी होती है , जो कुण्डली को कही भी स्पर्श नही करती है |इस कुंडली को अवतलाकार कटे ध्रुवो N व S के बीच रखा जाता है |पत्ती से एक दर्पण m जुड़ा होता है, जो पत्ती के साथ घूमता है | इसके विक्षेप को लैम्प और पैमाने की मदद से पढ़ लिया जाता है| इस पूरे प्रबन्ध को एक धातु के बॉक्स में रखा जाता है| जिसमे सामने काँच की एक खिड़की लगी होती है | इसमे जिस धारा मापन करना होता है ,उसे टर्मिनल T₁ से प्रवेश करते है जो टर्मिनल T₂ से निर्गत हो जाती है |

 

सिद्धान्त 

इसका सिद्धान्त इस बात पर आधारित है | कि " जब किसी धारावाही कुंडली को एक समान चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है ,तो कुंडली पर एक बल आघूर्ण कार्य करता है "


क्रियाविधि 

यदि किसी कुंडली में i धारा हो तब कुंडली नपर लगने वाला बल आघूर्ण 

τ = NiABsin𝜽           一 (i)

where ;- N = कुंडली में फेरो की संख्या
A = कुंडली का क्षेत्रफल
B = चुम्बकीय क्षेत्र 
i = कुंडली में प्रवाहित धारा 
𝜽 = कुंडली की अक्ष पर खिंचे गये लम्ब और चुम्बकीय क्षेत्र के बीच कोण
∴ " कुंडली चुम्बक के अवतलाकार कटे ध्रुवों के बीच रखी है |  अतः कुण्डली पर प्रत्येक स्थिति में चुम्बकीय क्षेत्र त्रिज्य होगा | "
sin𝜽 = sin90 = 1
τ = NiAB           一 (ii)
 तार को एकांक कोण से ऐथों के लिए आवश्यक बल आघूर्ण को मरोड़ी दृढता कहते है | इसे c से प्रदर्शित करते है | अतः तार (पत्ती) को ф कोण से घूमने के लिए आवश्यक बल आघूर्ण 
τ = cф      一 (iii)
समीकरण (ii) व (iii) से 
 cф = NiAB
i = cф/NAB
But c/NAB = k ( धारा परिवर्तन गुणांक या धारामापी दक्षता गुणांक )
i = kф
i ∝ ф
अतः स्पष्ट है की धारामापी में प्रवाहित धारा उसके विक्षेप के अनुक्रमानुपाती होती है |

 
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